वास्तव में शून्य से उकेर कर कुछ काल्पनिक प्रसंगों के ताने-बानों के इर्द-गिर्द एक धाराप्रवाह कड़ी के रूप में अपनी बात को पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत करना ही शायद कहानी की रचना करना है। इसे मैंने विविध कहानियों की रचना करते हुये महसूस किया। मैं नहीं जानता कि अपनी इन सभी कहानियों में पाठकों को बांधे रखने में, मैं कहां तक सफल हो सका या फिर अपनी बात कहने में कितना समर्थ हो सका। लेकिन मां सरस्वती की कृपा एवं माता-पिता सहित विद्वतजनों के आशीर्वाद से जितना संभव हो सकता था, कोशिश की। वैसे भी, कोई भी रचना किसी व्यक्ति विशेष की कृति नहीं होती, यह तो मां सरस्वती की महती कृपा होती है। एक रचनाकार तो केवल हेतु की तरह होता है। मैंने भी समाज के सम्मुख फैली विभिन्न विसंगतियों को आपके सम्मुख प्रस्तुत करने, एक हेतु बनने का प्रयास किया है।